आईने का प्रतिबिंब

                 आईने का प्रतिबिंब


दूर इलाके की घनी आबादी वाली जंगल में एक छोटे से शहर में, "मोहन प्यारे" नाम की एक पुरानी नाई की दुकान थी। इसका लकड़ी का चिन्ह हवा में धीरे-धीरे हिलता था, और कतरनों की धीमी आवाज हर सुबह सड़कों पर गूंजती थी।



यह दुकान पीढ़ियों से चली आ रही थी, और इसके मालिक, मोहन प्यारे को यह अपने पिता से विरासत में मिली थी। वह मंद मुस्कान वाला एक बुजुर्ग व्यक्ति था और उसके हाथों ने वर्षों से अनगिनत लोगों के बाल काटे थे। 

ठंड की एक सुबह, लीली नाम की एक युवा लड़की दुकान में आई, उसके लंबे, उलझे हुए बाल उसकी कमर तक गिरे हुए थे। उसे हमेशा अपने बालों पर गर्व था, लेकिन हाल ही में उसे यह बोझ लगने लगा था।

यह बड़ा था, आसानी से उलझ जाता था, और वह खुद को सीसे से दूर पाती थी क्योंकि इसे देखना अब उसके बस में नहीं था। वह मोहन प्यारे की दुकान पर आई और बोली चाचा क्या आप मेरे बालों को काट सकते हो?



मोहन प्यारे ने मुस्कुराते हुए कहा बेटी मैं सालों से ये काम कर रहा हूं। मेरा काम ही है बालों को काटना। लीली कुर्सी पर बैठ गई, मोहन प्यारे ने उसके बालों को लडको की तरह काट दिया।

लीली गुस्से में आकर मोहन प्यारे को उल्टी सीधी बात कहने लगी। कहें भी क्यों ना उसने लीली के बालों को इतना छोटा जो कर दिया था। लीली बहुत गुस्से में थी, वो प्यारे मोहन को बिना पैसे दिए वहां से चली गई।

तभी थोड़ी देर में वहां के राजा अग्रसेन ने अपने सैनिकों को आदेश जाओ गांव की लड़कियों को बंदी बनाकर लाओ। हमें उनके साथ विवाह करना है। सैनिकों ने ठीक ऐसा ही किया।



लेकिन लीली को देखने से मालूम पड़ता था कि वो स्त्री नहीं पुरुष है, जिसकी वजह से लीली को सैनिकों ने उसे बंदी नहीं बनाया। ये सब देख लीली को बुरा तो बहुत लगा पर लीली को यकीन नहीं हो रहा था कि सैनिकों ने उसे बंदी नहीं बनाया।

वह मोहन प्यारे के पास गई और उनसे माफी मांगने लगी। और कहा चाचा आपकी वजह से आज मैं बंदी होने से बच पाई। ये लीजिए आपके पैसे और मुझे माफ कर दीजिए।

दोस्तो आज की कहानी से हमे ये सीख मिलती है, कि जो होता है अच्छे के लिए होता है। भले ही उस वक्त हमे वो ठीक ना लगे जो हमारे मुताबिक ना हुआ हो पर वास्तव मे वो हमारे फायदे के लिए होता है। 

धन्यवाद।

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